उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
सुमति ने कहा, ‘‘हाँ, परमात्मा की कृपा है कि मेरी स्मरणशक्ति तीव्र है। अब तो आपने भी पहचान लिया होगा।’’
‘‘डॉक्टर साहब के साथ होने से तो सन्देह हो ही नहीं सकता।’’
सुमति मूल्य दे चुकी थी। नलिनी ने भी ओवलटीन के डिब्बे के दाम चुकाए। इस समय सुदर्शन ने पूछ लिया, ‘‘चाय घर पर चलकर पी जाए या यहीं ‘वेन्जर’ में चलें।’’
उत्तर सुमति ने दिया, ‘‘आप कहते हैं कि आपकी बहन हैं तो घर चलिए न।’’
‘‘ठीक है। आओ नलिनी चलें। मोटर हमारे पास है। घर पर निष्ठा भी होगी और वह तुम्हें देखकर बहुत प्रसन्न होगी।’’
नलिनी में परिवर्तन आ चुका था। वह भीगी बिल्ली बन साथ चल पड़ी।
कोठी में पहुँचे तो नलिनी तथा सुदर्शन ड्राइंग-रूम में बैठ गए और सुमति चाय का प्रबन्ध करने भीतर चली गई। किसी दूर कमरे में से सितार बजने की ध्वनि आ रही थी। सुदर्शन ने बताया, ‘‘निष्ठा बजा रही है।’’
‘‘बहुत मधुर बजाती है।’’
‘‘हाँ, वह गाती भी है।’’
‘‘तब तो उसको यहाँ बुला लीजिए। आप सिफारिश लगाएँगे तो वह हमें भी सुना देगी और आपसे सुलह का जश्न हो जाएगा।’’
‘‘तो तुम मुझसे लड़ी हुई थीं?’’
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