उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
एक अन्य परिवर्तन उसमें आ गया। आज से पूर्व वह बहुत बन-ठन कर स्कूल जाया करती थी। साड़ी, ब्लाउज़ मोज़े सब एक ही रंग के रहते थे। सैंडल भी उनके अनुरूप ही रहते थे। वह जूड़ा बाँधती थी और उस पर सदा गजरा रहता था। अब उसने इन सब बातों की ओर ध्यान देना छोड़ दिया। सफेद धोती, सफेद ब्लाउज़ पाँवों में सादी चप्पल, जूड़े पर गजरा नहीं रहा था। मुख पर पाउडर तथा सुर्खी आदि का प्रयोग भी उसने छोड़ दिया। स्कूल की अन्य अध्यापिकाएँ जो उसको अल्ट्रा-मॉडर्न’ की उपाधि दिया करती थीं, अब उसकी सादगी पर चकित होने लगी थीं।
श्रीपति प्रातः नित्य सुदर्शन से मिलता था, परन्तु न तो सुदर्शन ने उसको विवाह पर न आने का उलाहना दिया और न ही श्रीपति ने कभी उसको तथा उसकी पत्नी को घर पर आने का निमंत्रण दिया। अन्य प्रोफेसर कभी पूछ लेते, ‘‘हलो डाक्टर सुदर्शन! कैसी पट रही है बीवी से?’’
सुदर्शन का प्रायः उत्तर होता, ‘‘अपने विचार से सन्तोषजनक है।’’
‘‘अच्छा भाई! अब लड़का होने के समय ही दावत की आशा कर सकते हैं।’’
‘‘यह भी होगा। ‘नेचर विल एसर्ट इटसेल्फ’।’’
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