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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


उसे अभी भी चुप देख माँ ने स्नेहपूर्वक कहा, ‘‘बेटी। अब सो जाओ। प्रायः उठ स्नानादि कर शुद्ध चित्त से अपने भविष्य के विषय में विचार करना। ईश्वर पर भरोसा रखो। वह जो कुछ करता है, भले के लिए ही करता है।’’

माँ गई तो नलिनी ने कमरे का द्वार भीतर से बन्द कर लिया और सोने का यत्न करने लगी। उसे नींद नहीं आ रही थी। बड़ी कठिनाई से प्रातः पाँच बजे उसे नींद आई और सात बजे वह पुनः उठ गई। उसकी नींद तो खुल गई परन्तु उसका सम्पूर्ण शरीर पीड़ा कर रहा था। सिर भारी था। उसने स्कूल से दो दिन का अवकाश ले लिया।

अगले दिन माँ और भाभी ने उसे पुनः समझाया। वह उस दिन भी मौन ही रही। वास्तव में वह विचार कर रही थी कि अब उसको क्या करना चाहिए। कृष्णकांत खड़वे का फोटो उसके पास आया हुआ था। वह उसने देखा था और उसकी तुलना प्रो० सुदर्शन से कर, उसे एक ओर रख दिया था। कई दिन तक वह उसकी मेज पर ही पड़ा था, परन्तु फिर वह लापता हो गया। उसका अनुमान था कि उसकी भाभी उठाकर ले गई है।

परन्तु दो दिन पूर्व अपने कमरे की सफाई करते समय वह फोटों उसको रद्दी की टोकरी में पड़ा मिला, तो उसने उसे उठाकर अपनी मेज की दराज़ में रख दिया। आज उसने वह चित्र निकाला और देखने लगी। वह उस व्यक्ति का अपने पति के रूप में चिन्तन करने लगी।

आज खड़वे की तुलना करने के लिए प्रो० सुदर्शन क्षेत्र के मध्य में नहीं था। अतः वह उतना खराब भी लग नहीं रहा था, जितना उसको समझ रही थी। इससे उसके चित्त का सन्तुलन शीघ्र ही लौट आया और वह अगले दिन अपने अध्यापन-कार्य के लिए चली गई।

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