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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


निष्ठा को इस वार्तालाप में किसी प्रकार की रुचि नहीं थी। उसका ध्यान रघुवीर की शरारतों पर था। वह अब पाँच वर्ष का हो गया था।

रघुवीर को अपने पास बैठाकर निष्ठा बता रही थीं, ‘‘माताजी से पूछे बिना तुमने यह लड्डू क्यों उठा लिया?’’

‘‘बड़ा स्वादिष्ट है।’’

‘‘यह तो ठीक है, लेकिन जो तुम्हें मिले थे वे कहाँ गए?’’

‘‘वे तो मैं सब खा गया हूँ।’’

‘‘चारों?’’

‘‘हाँ, सब खा गया हूँ।’’

‘‘फिर भी भूख बची हुई है?’’

रघुवीर सोचने लगा कि क्या करे। फिर कुछ विचारकर बोला, ‘‘लड्डू भूख में ही नहीं खाए जाते, वे तो स्वादिष्ट होने पर कभी भी खाए जा सकते हैं।’’

‘‘किन्तु भूख के समय खाने से उनका स्वाद दुगुना हो जाता है।’’

सुदर्शन ने निष्ठा का ध्यान आकर्षित करते हुए कहा, ‘‘निष्ठा! ये हैं लक्ष्मणजी। किसी समय ये मेरे शिष्य थे किन्तु अब मित्र हैं। माँजी ने इन्हें हमारे घर में आकर रहने का निमन्त्रण दिया है। आज ये अपना सामान लेकर आ जावेंगे।’’

उसी सायंकाल लक्ष्मण जनपथ होटल से कश्मीरीलाल की कोठी पर रहने के लिए आ गया।

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