लोगों की राय

उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

327 पाठक हैं

बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


इस प्रकार एक वर्ष और व्यतीत हो गया। अब तक सुमति का एक और बच्चा उत्पन्न हो गया था। उसके दूसरे पुत्र का नाम सोमनाथ रखा गया।

जिस दिन सोमनाथ का नामकरण था उस दिन संस्कार के अवसर पर एक सर्वथा अपरिचित व्यक्ति के दर्शन हुए। वह आया तो सुदर्शन ने उठकर उसका स्वागत किया और उसे आदर-सहित बैठाया। जब तक संस्कार होता रहा उस पूर्ण अवधि में वह चुपचाप बैठा रहा। संस्कार के उपरान्त जब सब मित्र और सम्बन्धी विदा हो गए तो भोजन के समय सुदर्शन ने इस नवीन व्यक्ति का परिचय अपने परिजनों से कराने की दृष्टि से कहा, ‘‘माँ! ये मेरे नवीन मित्र लक्ष्मण भैया है। ये कुछ दिन के लिए अहमदाबाद से दिल्ली आए हैं। अभी तो ये जनपथ होटल में ठहरें हैं, मैं इनको अपने यहाँ आकर रहने के लिए आग्रह कर रहा हूँ।’’

‘‘हाँ, ठीक तो है बेटा! वहाँ होटल में भला क्या सुख मिल सकता है? जो स्वतन्त्रता और सुविधा घर में है वह होटल में कहाँ उपलब्ध हो सकती है?’’

‘‘मैं आप लोगों को कष्ट नहीं देना चाहता।’’

‘‘इसमें कष्ट की क्या बात है? तुम आज ही अपना सामान लेकर यहाँ चले आओ।’’

‘‘क्यों भाभी!’’ लक्ष्मण ने सुमति की ओर देखकर पूछा।

‘‘मुझसे पूछने की क्या आवश्यकता है? भाई साहब! पिताजी तो आपको अपने पास पृथ्वीराज रोड पर रखना चाहते थे। वह स्थान नगर के केन्द्र से दूर होने के कारण वे बलपूर्वक नहीं कह सके। किन्तु हमारा घर तो मन्त्रालय से फर्लांग-भर के अन्तर पर भी नहीं है। आप जितनी बार चाहें दिन में वहाँ जा सकते हैं।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book