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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘आत्म-संयम का अभ्यास और अपनी इन्द्रियों को अपने वश में करने का यत्न कर रही हूँ।’’

निष्ठा की इस अवस्था का वर्णन जब कल्याणी ने सुमति से किया तो उसने कहा, ‘‘माँजी! हमें उसको इस विषय में विवश नहीं करना चाहिए। मैंने उससे एक बात का वचन लिया हुआ है कि वह जब कभी भी विवाह की इच्छा करने लगेगी मुझको बता देगी और तब हम उस दिशा में उसकी सहायता कर देंगे।

‘‘किन्तु इस वचन की विद्यमानता में भी हमें सतर्क और सचेत तो रहना ही चाहिए। इस समय देश जड़वादियों से भर गया है और वह स्वयं को इन जड़वादियों के समाज में समुपयुक्त नहीं पाती।

‘‘देश में ऐसा वातावरण, ऐसे कानून और ऐसे नियम बन गए हैं कि अतिनिर्धन व्यक्ति से लेकर विपुल धन के स्वामी तक बिना अनैतिक व्यवहार के निर्वाह नहीं कर पाता। इस अवस्था में वह इसी पापमय सृष्टि की वृद्धि में भागीदार नहीं बनना चाहती। इस वातावरण में यदि पाप के बिना जीवन सम्भव ही नहीं तो जीवन को रखने के लिए इस पापी संसार का कम-से-कम भोग किया जाए। उसने इस वर्ष वस्त्र नहीं बनवाए। अन्न खाना कम कर दिया है, अन्य तथा शाक-भाजी के अतिरिक्त वह अब कुछ नहीं लेती। दूध, दही, भात, मिठाई तो उसको कभी खाते देखा ही नहीं।

‘‘यह सब वह इसीलिए कर रही है कि उसको किसी की भी आय में ईमानदारी, धर्म अथवा सत्य-व्यवहार का लेश-मात्र भी भाग दिखाई नहीं देता। वह इस संसार में अधिक बच्चे उत्पन्न कर पृथ्वी का बोझ बढ़ाना नहीं चाहती।’’

यही सब-कुछ कल्याणी ने अपनी बड़ी लड़की उषा को लिख दिया।

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