उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
|
327 पाठक हैं |
बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
आमार मिल लागि तुमि आस कबे छेके,
तोमार चन्द्र सूर्य तोमार ताखवे को थाम ठेके।
‘‘इस पर वह कहने लगी कि इससे अच्छा तो यही है–
बाँधि न सकहिं मोहि हरि के बल प्रकट कपट आगार
मैं ताहि अब जान्यौ संसार
देखत ही कमनीय, कछु नहिन मुनि किए विचार।
ज्यों कदली तरु मध्य निहारत कबहूँ न निकसत सार।
मैं ताहि अब जान्यौ संसार।
‘‘इस प्रकार वह अपनी पसन्द के गीत अब स्वयं ही ढूँढ़ लिया करती है।’’
निष्ठा के विषय में सबसे अधिक चिन्ता लग रही थी माँ को। बी० ए० की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त निष्ठा एम० ए० में प्रविष्ट होने के लिए गई ही नहीं। उसके प्रवेश-शुल्क के लिए माँ ने रुपए तो दिए थे किन्तु वे निष्ठा की अलमारी में ही रखे रहे। कई दिनों बाद कल्याणी ने पूछा, ‘‘निष्ठा कॉलेज नहीं जाती क्या?’’
‘‘माँ, इस वर्ष तो मैंने प्रवेश ही नहीं लिया।’’
‘‘मैं प्रवेश के लिए तुमको रुपए तो दे गई थी?’’
‘‘वे अलमारी में रखे हुए हैं। मेरा चित्त कॉलेज में प्रविष्ट होने के लिए नहीं किया।’’
‘‘क्यों?’’
|