उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘मैंने विचार किया कि मुझे नौकरी तो करनी नहीं है। तो इस पढ़ाई का फिर लाभ क्या है। एक पढ़ी हुई नलिनी है, दूसरे भैया हैं। इसके अतिरिक्त विश्वविद्यालय की शिक्षा प्राप्त किए हुए युवक मुझसे विवाह का प्रस्ताव लिए आए है; उन सबको देखा है और मैं उस शिक्षा से वंचित रहकर ही सन्तुष्ट हूँ।’’
‘‘पर बेटी कुछ तो करना ही होगा’’
‘‘वह कुछ तो मैं कर रही हूँ।’’
‘‘क्या कर रही हो?’’
‘‘वही कुछ, जो यूनिवर्सिटी में नहीं मिलता। मैं इस संसार का रहस्य जानने का यत्न कर रही हूँ।’’
‘‘गाना गा-गाकर?’’
‘‘हाँ, कुछ इससे और कुछ गुरुजनों के चरणों में बैठकर।’’
‘‘कहाँ है तुम्हारे गुरु?’’
‘‘वे हैं!’’ उसने अलमारी में रखी पुस्तकों की ओर संकेत कर दिया।
‘‘तो यह मार्ग सुमति ने बताया है?’’
‘‘नहीं माँ! सुमति विवाहिता है और मैं अविवाहिता। हम दोनों के मार्ग भिन्न हैं।’’
‘‘देख लो, तुमको दिन-रात अपने कमरे में बैठे देख तुम्हारे पिता चिन्ता करते हैं। उनको भय लग रहा है कि कहीं तुम बीमार न हो जाओ।’’
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