उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘क्या कह रहे थे ये लोग?’’ ओझा ने पूछा।
‘‘माताजी कह रही थीं कि मैं अपने लड़के को मिलने के लिए क्यों नहीं गई।’’
‘‘तुमने क्या उत्तर दिया?’’
‘‘यही कि अब तो आना-जाना बन ही रहा है, मैं आऊँगी।’’
‘‘और उन्होंने इसका क्या उत्तर दिया?’’
‘‘उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया। मैं समझती हूँ कि यह सम्बन्ध बनेगा नहीं।’’
‘‘क्यों? उन्हें सुधाकर जैसा वेतन पाने वाला आफिसर कहाँ से मिलेगा?’’
नलिनी बोली, ‘‘आपने डॉक्टर की पत्नी को अनपढ़ कह दिया और मुझे पूर्ण विश्वास है कि वह अभी आपको आजीवन पढ़ा सकती है।’’
‘‘मुझे? मैं समझता हूँ कि अपने बुद्धू पति को पढ़ाती होगी। मैंने तो एक बात में ही उसको चुप करा दिया। निलिनी। मैं लिट्ररेचर में फर्स्ट क्लास फर्स्ट एम० ए० हूँ। उसने कौन-सी डिग्री प्राप्त की है?’’
नलिनी इस प्रकार की अभिमान-युक्त बातें सुनने की अभ्यस्त हो चुकी थी। यों तो वह स्वयं भी उसे सुनाने लगी थी। परन्तु वह नहीं जानती थी कि निष्ठा का विवाह होगा या नहीं। इसलिए उसने इस सम्बन्ध में बाधक और सहायक कुछ भी न होने के विचार से चुप रहना ही उचित समझा।
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