उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘हाँ, मैं चाहता हूँ विवाह सरल रीति से हो। एक भोज अवश्य हो, उसमें मेरे आफिसर और अधीनस्थ कर्मचारी सम्मिलित होंगे। इस कारण उसका प्रबन्ध तो किसी अच्छे होटल की व्यवस्था के अन्तर्गत हो जाना चाहिए। शेष जो भूषण वस्त्रादि आप देना चाहें उन्हें सन्दूक में बन्द कर एक दिन पहले भेज सकते हैं।’’
सुदर्शन ने बात बदलकर सुधाकर से पूछा, ‘‘सुधाकरजी! आपको भी कुछ पूछना है?’’
‘‘मैं समझता हूँ कि आपके स्थान पर आपके पिताजी को आना चाहिए था जिससे कि बात निर्णयात्मक हो जाती।’’
‘‘आज तो मैं माताजी से आपका परिचय कराने के लिए ही आया था। मेरी अनपढ़ पत्नी निष्ठा की सहेली भी है। इस कारण मैं इसको साथ ले आया था जिससे यह उसको आपके विषय में ठीक-ठीक बता सके।’’
‘‘अब आप हमें जाने की स्वीकृति दें। आपके पिताजी के प्रश्नों का उत्तर यथासमय या तो मैं स्वयं अथवा पिताजी द्वारा भेजने का यत्न करूँगा।’’
‘‘मैं तो कल सिन्दुरी जा रहा हूँ। आप वहाँ के पते पर पूर्ण समाचार लिख दीजिएगा।’’
इस प्रकार वे लोग चले गए। नलिनी उन्हें मोटर तक छोड़ने के लिए आई। कल्याणी ने कहा, ‘‘निलिनी! तो अपने बच्चे से मिलने के लिए भी नहीं आई?’’
‘‘समय नहीं मिला। अब तो आने-जाने का मार्ग बन ही रहा है।’’
कल्याणी ने इसका उत्तर नहीं दिया। मोटर चली गई तो नलिनी लौटकर पिता-पुत्र के समीप चली आई। वे दोनों अब तक बरामदे में ही खड़े थे।
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