उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
सुमति मुस्करा रही थी। वह बोलना नहीं चाहती थी। परन्तु जब डॉक्टर उसकी ओर प्रश्नमयी दृष्टि से देखने लगा तो वह कहने लगी, ‘‘ओझा साहब! सुधाकरजी का परिवार कोई लिमिटेड कन्सर्न होगा या केवल पार्टनरशिप?’’
‘‘प्राइवेट लिमिटेड कन्सर्न में तो कम-से-कम तीन पत्तीदार होने चाहिए।’’
‘‘एक तो आप हैं ही। इधर डॉक्टर साहब के पिताजी भी हो सकते हैं।’’
सुदर्शन देख रहा था कि सुमति अपनी अकाट्य युक्ति का प्रयोग करने लगी है। परन्तु ओझा अपने अफसरी ढंग पर उतर आया और बोला, ‘‘बीबी! तुम कितना पढ़ी हो?’’
एक क्षण तो सुमति अटकी फिर उसने तुरन्त कहा, ‘‘पढ़ना-लिखना कोई धान्य तो है नहीं कि तराजू में तोलकर दिया अथवा लिया जाए। फिर भी मैं कुछ तो पढ़ी हूँ ही।’’
‘‘कौन-सी परीक्षा उत्तीर्ण की है?’’
‘‘कोई नहीं।’’
‘‘तो सर्वथा अनपढ़ हो। मैं तुमसे बात नहीं कर सकता।’’
सुमति मुस्कराकर चुप रही। अपनी पत्नी की सफाई देते हुए सुदर्शन ने कहा, ‘‘यह किसी यूनिवर्सिटी की डिग्री प्राप्त तो नहीं है परन्तु।’’
डॉक्टर साहब! छोड़िए भी इस बात को। यह तो अनपढ़ लोगों को अपने स्थान पर बैठाने के लिए बात हो गई थी।’’
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