उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
इतनी बड़ी राशि सुनकर तो सुधाकर के मुख से भी लार टपकने लगी। उसने कहा, ‘‘इस विषय में आप बात कर लीजिए। मुझे बीच में मत खींचिएगा। कदाचित् लड़की भी आवेगी, मैं उसकी दृष्टि में छोटा बनना नहीं चाहता।’’
‘‘अच्छी बात है, तुम चुप रहना। मैं ही सब बात करूँगा। हो सके तो लड़की को हमारी बातों से दूर ले जाना।’’
जब सुदर्शन आदि मोटर से उतरे तब तक ओझा पिता-पुत्र भी मोटर का शब्द सुनकर बाहर आ गए थे। नलिनी उनके स्वागत-सत्कार में लग गई थी। सुधाकर ने निष्ठा को नहीं देखा तो उसे कुछ निराशा हुई। उसने अपने पिता से कहा, ‘‘डैडी! वह तो आई नहीं।’’
‘‘तो यह कौन है?’’
‘‘सम्भवतया डाक्टर साहब की पत्नी हों।’’
‘‘बहुत ही रूपवती है।’’
सुधाकर मुस्करा दिया। सुरेन्द्रनाथ लड़की के न आने से प्रसन्न था। वह समझता था कि अनुपस्थिति में लेन-देन की बात भली-भाँति हो सकती है।
इस समय उसकी दृष्टि नलिनी और सुमति के पृथक् में जाकर बात करने पर पड़ी। बैठे हुए लोगों में परस्पर परिचय हो रहा था। सुधारक ने अपने पिता का परिचय और सुदर्शन ने अपनी माता तथा पत्नी का। साथ ही उसने कहा, ‘‘नलिनी मेरे एक साथ प्रोफेसर की बहन होने से मेरी भी धर्म बहन बनी हुई है।’’
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