उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
सुधाकर इसका अभिप्राय समझता था। उसकी सिन्दरी में नौकरी लगी तो वहाँ चला गया। तीन मास बाद वह किसी सरकारी काम से दिल्ली आया तो एक दिन संगीत-समारोह में पहुँच गया। वहाँ उसकी दृष्टि निष्ठा पर पड़ी।
समारोह के प्रबन्धकों से उसने निष्ठा के विषय में पूछा तो विदित हुआ कि वह डॉ० सुदर्शन की बहन है। तब वह डॉ० सुदर्शन से मिला और अपने मन की बात बताई तो उसने विचार करने के लिए कह दिया। आज प्रातःकाल डॉ० सुदर्शन ने मिस्टर ओझा को फोन किया और सायंकाल पाँच बजे उसकी कोठी पर आने का समय निश्चित हो गया।
ओझा ने अपने लड़के से निष्ठा के पिता की स्थिति के विषय में पूछा। जब उसे विदित हुआ कि वह सम्पन्न व्यक्ति है तो उसने सुधाकर से कहा, ‘‘सुधाकर! मैंने तुम्हें पढ़ाने-लिखाने में इतना व्यय किया है कि एक योग्य इंजीनियर बन गए हो। उसके लिए लड़की वालो से लेन-देन की बात निश्चित हो जानी चाहिए।’’
‘‘तो आप दहेज माँगेगे?’’
‘‘नहीं, दहेज तो कानून वर्जित है। मैं तो लड़की के पिता से उसकी सम्पत्ति में लड़की का भाग माँगना चाहूँगा।’’
‘कितना होगा लगभग वह?’’
‘‘जैसा कि विदित हुआ है तदनुसार कश्मीरीलाल की दिल्ली और पंजाब की सम्मत्ति पचास लाख से अधिक है। उसमें सत्रह से बीस लाख के लगभग तुम लोगों को मिलना चाहिए।’’
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