उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
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श्री सुरेन्द्रनाथ ओझा की पत्नी का देहान्त हो चुका था। फिर भी वह अतीव आनन्द का जीवन व्यतीत कर रहा था। वह अपने अधीनस्थ कर्मचारियों की सरकार-रूपी आँधी से रक्षा करता था तो उसके विनियम में उनसे घूस भी लेता रहता था। कागज, छपाई, आदि अनेक कार्यों में उसका भाग निश्चित रहता था।
नलिनी जब रुपयों के रूप में घूस नहीं दे सकी तो उसको उसने दूसरा ढंग बता दिया। एक-दो बार नलिनी उसकी कोठी पर आई तो फिर दोनों में स्थायी सम्बन्ध बनाने की बात चल पड़ी।
नलिनी ने अपनी बात बताते हुए कहा, ‘‘मैं सब प्रकार से सावधानी बरतती हूँ किन्तु फिर भी गर्भ-स्थापना का भय तो बना ही रहता है। मेरा पति एक समय कारावास में है, गर्भ ठहर गया तो फिर भारी गड़बड़ होने की सम्भावना है।’’
‘‘तुम्हारे पति ने क्या अपराध किया था?’’
‘‘एक अल्पायु लड़की का अपहरण।’’
‘‘ओह! कब तक छूट जाएगा?’’
‘‘पिछले वर्ष ही उसे सात वर्ष का कारावास मिला है।’’
‘‘तुम किसके पास रहती हो?’’
‘‘मेरे भाई के एक मित्र है, उनकी बहन बनकर उसके पास रहती हूँ।’’
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