उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
|
327 पाठक हैं |
बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
सुमति नलिनी के मुख पर घबराहट के लक्षण देख उसके मन के भावों का अनुमान लगाने लगी। अतः लपककर नलिनी के पास पहुँचते हुए उसने कहा, ‘‘तो ये हैं तुम्हारे आफिसर?’’
नलिनी सुमति को पृथक् ले जाकर पूछने लगीं, ‘‘माताजी तथा डॉक्टर साहब इस विषय में क्या जानते हैं?’’
‘‘उतना ही जितना तुम्हारे नागपुर से आने के समय जानते थे।’’
‘‘सत्य?’’
‘‘मैंने कभी किसी के साथ विश्वासघात नहीं किया। नलिनी । यह तुम्हारी करनी है तुम ही जानो। मेरा अथवा अन्य किसी का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है।’’
इससे आश्वस्त हो नलिनी उधर को लौटी जिधर मिस्टर ओझा और उसके पुत्र का कल्याणी से परिचय कराया जा रहा था।
|