उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
कॉलेज से सुदर्शन को भी साथ लेकर जब ये लोग सुधाकर के पिता एस० एन० ओझा की कोठी पर पहुँचे तो सर्वप्रथम उन्हें वहाँ पर नलिनी के दर्शन हुए। उसे वहाँ देख सुमति स्तब्ध रह गई। उसको एक क्षण के लिए स्मरण हो आया कि उसने अपनी नौकरी सरकारी प्रकाशन-विभाग में बताई थी। वह सोचने लगी कि क्या यही वह सुपरवाइज़र होगा जिसके सम्मुख स्वयं को अर्पण कर नलिनी ने नौकरी प्राप्त की है?
वह अभी विचार कर ही रही थी कि मोटर से उतरते हुए कल्याणी की दृष्टि भी बसमदे में खड़ी नलिनी पर पड़ गई। उसने सुमति से पूछा, ‘‘क्या वह नलिनी खड़ी है?’’
‘‘हाँ माँजी।’’
‘‘तो यह घर बनाया है इसने?’’
‘‘मैं समझती हूँ कि मिस्टर ओझा उनके आफिसर हैं और उसी सम्बन्ध में वह यहाँ आई होगी।’’
वे लोग बरामदे में जा पहुँचे। कल्याणी और सुमति को देखकर नलिनी को भी विस्मय हुआ था। वह समझती थी कि सुमति ने अब तक सारी बात अपने घर पर बता दी होगी। इससे वह अपनी स्थिति के विषय में विचार कर रही थी।
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