उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘तो तुम अपनी उपमा उससे देकर बताओ।’’
‘‘मैं तो कुछ हूं ही नहीं। नलिनी बहन! तुम भी उसकी परछाईं मात्र ही दिखाई-दोगी।’’
यह सुन नलिनी का मुख पीला पड़ गया। उसने कुछ कहने के लिए पूछा, ‘‘वह कौन-सी परीक्षा उत्तीर्ण है?’’
‘‘यह तो मैंने पूछा नहीं। अभी सोलह वर्ष की ही है। मैट्रिक की परीक्षा में कदाचित् बैठी नहीं।’’
‘‘सत्य?’’ नलिनी की जान-में जान आई। वह सोच रही थी कि एक बात तो प्रोफेसर की हँसी उड़ाने के लिए मिली है।
निष्ठा की माँ निष्ठा को किसी कार्यवश बुलाकर ले गई, तो उसने सुख की साँस ली। इसके उपरान्त उसे वहाँ बैठा रहना फीका-फीका लगने लगा। वह अपना वहाँ आना निरर्थक समझने लगी थी। अन्य कई स्त्रियाँ वहाँ आई हुई थीं। अब उसका चित्त नहीं किया कि किसी से बात करे।
बारात का समय हुआ तो निष्ठा नलिनी के पास आकर कहने लगी, ‘‘हम लड़की को तेल का शकुन करने जा रही है, आप भी चलेंगी क्या?’’
‘‘ तो परछाईं अपनी ज्योति को देखने चले?’’
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