उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
निष्ठा ने बात तो बदल दी, परन्तु वह बात उसके मन में बैठ गई। इससे पहले वह समझती थी कि विवाह व्यर्थ का झंझट है। अब उसे बताया गया कि शरीर, प्रकृति और परमात्मा का संयोग है। इसको जानकर ही परमात्मा को जाना जा सकता है। विवाह शरीर का गुण है। अतः विवाह होना शरीर को जानने में सुगमता उत्पन्न करता है।
फिर एक दिन वह पूछने लगी, ‘‘संन्यास लेने से तो विवाह का ज्ञान होता नहीं। फिर संन्यास मुक्ति का साधन कैसे हो गया?’’
‘‘कुछ आत्माएँ मुक्ति पूर्वजन्म में संसार का ज्ञान प्राप्त कर संसार को पार कर संन्यास लेती हैं। उनके लिए ही कहा हैः–
अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते।।
अर्थात् अविद्या का ज्ञान प्राप्त कर मृत्यु को पार कर विद्या से अमृत को पाते हैं।
‘‘परन्तु कुछ लोग अविद्या को जाने बिना संन्यास ले लेते हैं। वे भटकते हुए पुनः निकृष्ट योनियों में आते हैं और पुनः अविद्या को जान मृत्यु को पार करते हैं।’’
‘‘और तुम क्या समझती हो कि मुझे अविद्या का ज्ञान नहीं?’’
‘‘यह तो तुम ही जान सकती हो। इसके जानने का उपाय यह है कि जो मनुष्य अविद्या की वास्तविकता को जान जाता है, वह उससे उपराम हो जाता है। उसके समक्ष अविद्या अपने प्रलोभन उपस्थित करती है और जो उसके पूर्ण तारतम्य को नहीं जानता, वह उन प्रलोभनों में फँस जाता है।’’
इस प्रकार समय व्यतीत हो रहा था।
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