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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।

2

प्रातः संगीत का अभ्यास करते हुए निष्ठा गा रही थी -

प्रिय मत बोलो तुम!
मौन तुम्हारा उर में आ भर जाएगा
प्रिय मत बोलो तुम!
पड़ा रहूँगा स्तब्धमना मैं, तोष हृदय पर छा जाएगा
प्रिय मत बोलो तुम!


सुमति देख रही थी कि निष्ठा आज नित्य की अपेक्षा अधिक तन्मयता से गा रही है। इसके स्वर में अधिक मधुरता और उसके ताल-लय में अधिक संतुलन एवं उसके बोलो में अधिक रस प्रस्फुटित हो रहा था।

नित्य की भाँति उसके संगीत की ध्वनि सुन सुमति उठ अपने पति के कमरे में जाकर चाय बनाने लगी। चाय बना, डॉक्टर को पिला वह अपने बच्चे के कमरे में चली गई। उसे और रघुबीर को अपने खटोले में सोया देख, नौकरानी को जगा और उसको बच्चों को टट्टी-पेशाब कराने के लिए कहकर वह निष्ठा के कमरे में आ गई। निष्ठा को सदा की भाँति सितार का अभ्यास समाप्त कर स्वर भरते देख वह भी वहाँ बैठ तानपूरा ले निष्ठा के संगीत में स्वर भरने लगी।

निष्ठा ने उक्त पद गाया और एकाएक बन्द करके कहने लगी–

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