उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
|
327 पाठक हैं |
बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
निष्ठा ने एक क्षण तक विचार किया और कह दिया–
‘यह बिनती रघुबीर गुसाई।
और आस-बिस्वास-भरोसो, हरो जीव-जड़ताई।।१।।
चहौं न सुगति, सुमति, संपति कछु, रिद्घि सिद्धि बिपुल बड़ाई।
हेतु-रहित अनुराग राम-पद बढ़ै अनुदिन अधिकाई।।२।।
यह बिनती रघुबीर गुसाई।
निष्णा ने बोल बता दिए और डायरेक्टर महोदय ने लिखकर कहा ‘‘मैं तिथि निश्चय कर अनु्बन्ध-पत्र भेज दूँगा।’’
इसके उपरान्त तो कई बार कार्यक्रम हो चुका था। वह समझती थी कि उसे किसी प्रकार का अभाव प्रतीत नहीं होता था। वह प्रातः से रात सोने के समय तक व्यस्त रहती थी। कभी-कभी तो उसे ऐसा अनुभव होता था। कि दिन छोटा हो गया है। उसका दिन-भर का कार्य समाप्त नहीं हुआ और रात सोने का समय हो गया है।
प्रातः चार बजे से लेकर रात के दस बजे तक व्यस्त रहती हुई वह विचार करती थी, उसके पास समय ही कहाँ है जो वह विचार कराए! यह बात सुमित्रा के कथन पर कि घर पर कुछ करने को नहीं, इसलिए वह संगीत सीखने चली आती है, उसके मन में आई थी। वह विचार करती थी कि उसके पास समय ही कहाँ है कि वह विवाह के झंझट में पड़े?
प्रातः के अल्पाहार तक उसका संगीत और सितार चलता था। अल्पाहार के उपरान्त वह आधा घण्टा आराम कर स्वाध्याय करने लगी थी। सुमति की सम्मति से वह उपनिषद्, पढ़ने लगी थी। मध्याह्न के भोजन तक उसका यह काम चलता था।
|