उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
सुमति इसमें सहायक हो जाती थी। कभी दोनों मिलकर भी किसी बात को समझ नहीं सकती थीं तो पण्डित मधुसूदनजी से टेलिफोन पर समय लेकर वहाँ पहुँचतीं और उनसे समझ आतीं। प्रायः मध्याह्नोत्तर घर का काम होता था। कपड़ों की मरम्मत, नए कपड़े सिलवाना, घर की सफाई तथा सजावट, रसद-पानी खरीदना, नौकरों के काम की देखभाल, कोठी की देख-रेख तथा समाचार-पत्र और वर्तमान युग या साहित्य पढ़ना। सायं की चाय के उपरान्त संगीत विद्यालय में जाना, पुनः घर आकर भाभी और भैया से सामयिक विषयों पर बात करना। रात के भोजनोपरान्त कभी रेडियो पर संगीत सुनना और कभी स्वयं संगीत का अभ्यास करना। तदनन्तर दस बजे से प्रातः चार बजे तक गहरी नींद सोना।
यह कार्य चलता रहता था। कभी रेडियो अथवा किसी संगीत समारोह में भाग लेने के लिए जाना होता तो कोई-न-कोई कार्य छोड़कर ही जाना हो सकता था।
जिस रात नलिनी घर पर नहीं आई, उससे अगले दिन निष्ठा स्वाध्याय के लिए बैठी तो सुमति आ गई। नित्य की प्रथा के अनुसार पाठ्य-पुस्तक में से निष्ठा पढ़ती थी और अर्थ करती थी। कभी अर्थ ठीक नहीं बनता था तो सुमति बता देती थी। तदनन्तर पाठ के विषय पर बातचीत होती थी।
आज निष्ठा ने पढ़ा, ‘ओऽम् ब्रह्मविदाप्नोति परम्।’ और सुमति ने बताया, ‘‘ब्रह्म के जानने वालों के लिए कोई भी बात दूर नहीं। सब कुछ समीप हो जाता है।’’
‘‘यह कैसे?’’ निष्ठा ने पूछ लिया।
‘‘यह इस प्रकार कि ब्रह्म सर्वत्र है। इसके अतिरिक्त कुछ नहीं। अतः इसके जान लेने के उपरान्त अन्य कुछ जानने योग्य रह ही नहीं जाता।’’
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