उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
निष्ठा ने इसका उत्तर नहीं दिया तो संगीत निर्देशक उसके घर पर मिलने आया और पत्र की बात स्मरण करा उसके उत्तर के विषय में पूछने लगा।
निष्ठा ने मुस्कराते हुए कह दिया, ‘‘मैं ग्रामोफोन का रिकार्ड नहीं जिसमें कला जो कुछ चाहें भर दें। मैं अपने को कला की सेवा करने वाली समझती हूँ। कला आवाज़ तथा स्वरालाप नहीं। ये तो कला के केवलमात्र आवरण है। कला तो इन आवरणों के भीतर भाव-रूपी आत्मा को कहते हैं। इस गज़ल के लिए मेरी कला में स्थान नहीं था।’’
‘‘तो फिर?’’ डायरेक्टर महोदय ने पूछ लिया।
‘‘जो कुछ मेरी कला में है, वह ही स्वर आलाप में प्रस्फुटित हो सकेगा।’’
‘‘अभिप्राय यह कि आप स्वेच्छा से गायेंगी?’’
‘‘हाँ, मेरा यही अभिप्राय है।’’
‘‘क्या गाएँगी?’’
‘‘आप समय निश्चित करिए। उसके अनुसार मैं गा दूँगी।’’
‘‘हम आपको प्रातः साढ़े सात से सवा आठ बजे का समय देंगे।’’
‘‘बिलावल’ में एक गीत गा दूँगी।’’
‘‘गीत के बोल क्या होंगे।’’
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