उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘निष्ठा! रुचि की बात नहीं है।’’ सुमित्रा ने गम्भीर हो उत्तर दिया, ‘‘मैं समझती हूँ कि मुझमें इसके लिए प्रतिभा नहीं है। फिर भी मैं सीखने आती हूँ। मन में विचार करती हूँ कि न आऊँ तो क्या करूँ? घर पर कुछ काम भी तो नहीं है। मैंने नौकरी करने का यत्न किया था, परन्तु माताजी ने मना कर दिया। उनका कहना था कि जब घर पर खाने-पहनने को न हो तो लड़कियों को नौकरी करनी चाहिए। यह उनका ही सुझाव है कि मैं संगीत सीख लूँ।’’
‘‘और भाग्य की बात है कि कई स्थान पर विवाह का यत्न किया गया है, परन्तु कोई-न-कोई कारण बन जाता है और होती-होती बात रुक जाती है।’’
निष्ठा मन में विचार कर रही थी कि सुमित्रा बेचारी भी घर बनाने की प्रतीक्षा कर रही थी। पति के मिल जाने से वह अपने रिक्त समय की पूर्ति समझने लगेगी। तो क्या इसके बिना जीवन रिक्त रहता है?
वह अपने विषय में विचार करती थी। जब से उसने प्ररीक्षा समाप्त कर और आगे पढ़ने में अरुचि अनुभव की तब से वह अपने जीवन को संगीत से भर रही थी। इसमें उसने कुशलता भी प्राप्त की थी। अब तो उसको सार्वजनिक संगीत-समारोहों में बुलाया जाने लगा था और नियमानुसार उसको भेंट भी मिलती थी। पिछले एक वर्ष में उसके रेडियों पर दो-तीन कार्यक्रम हो चुके थे। प्रथम बार रेडियों स्टेशन से उसे अपने स्वर की परीक्षा देने के लिए निमंत्रण आया तो वह परीक्षा देने में संकोच करती थी। उसने लिख भेजा, ‘‘परीक्षा लेनी हो तो यहाँ आकर ले सकते हैं अथवा संगीत-विद्यालय में आ सकते हैं। मैं परीक्षा देने की आवश्यकता नहीं समझती।’’
संगीत डायरेक्टर महोदय अपने एक सहायक के साथ विद्यालय में आ पहुंचे और दो-चार मिनट का ‘टेप’ पर उसकी आवाज का नमूना ले गए। इसके कुछ दिन उपरान्त वहाँ से पत्र आया, ‘‘आपकी आवाज़ रेडियो पर चल सकती है। पत्र के साथ संलग्न गज़ल को ठीक कर अमुक तिथि को रिहर्सल दे जाइए। उसी समय आपसे’ काण्ट्रैक्ट’ कर लिया जाएगा।’’
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