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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।

तृतीय परिच्छेद

1

नलिनी के अपने पुत्र को डॉ० सुदर्शन के घर छोड़कर लापता हो जाने की घटना के निष्ठा के मन में भारी हलचल उत्पन्न कर दी। उसने भाभी सुमति को यह कहते सुना था कि उसके अनुमान से वह अपना घर बना रही है। यह बात रात के भोजन के समय हुई थी।

निष्ठा उस समय बीस वर्ष की युवती थी। सब प्रकार से स्वस्थ और ज्ञानवान् थी। वह घर बनाने का अर्थ समझ रही थी। उस रात वह सोने गई तो बिस्तर पर करवटें लेते हुए ही उसकी रात व्यतीत हो गई। वह मन में इस विकट समस्या पर विचार कर रही थी कि क्या घर बनाए बिना नहीं रहा जा सकता और घर बनाने का अर्थ विवाह ही है? वह अपने विषय में विचार कर रही थी कि क्या वह घर में नहीं रह रही?

उसे अपने माता-पिता के घर में किसी प्रकार का कष्ट नहीं था। वह देख रही थी कि वह अपनी प्रायः सब कॉलेज तथा संगीत विद्यालय की साथियों से अधिक सुखी और सम्पन्नता का जीवन व्यतीत कर रही है। उसकी एक संगीत विद्यालय की साथिन थी सुमित्रा। महाशय नन्दलाल की दत्तका थी। महाशय नन्दलाल भारत के केन्द्रीय मन्त्रालय में क्लर्क थे। लड़की के विवाह का प्रबन्ध नहीं हो रहा था। अतः वह एम० ए० पास करने पर संगीत सीखने लगी थी। उससे निष्ठा की बात हुई थी। निष्ठा ने पूछ लिया, ‘‘सुमित्रा दीदी! संगीत में तुम्हें रुचि तो है नहीं। फिर जितना सीख गयी हो उतने पर ही सन्तोष क्यों नहीं कर लेती?’’

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