उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
इस विश्लेषण ने नलिनी को क्षुब्ध कर दिया। सुमति कुछ क्षण तक उसको देखती रही, उसके मुख पर निरन्तर बदलने वाले रंगों का अर्थ समझने का यत्न करती रही। जब वह कुछ अनुमान नहीं लगा सकी तो वह अपनी मेज के पास रखी कुर्सी पर आ बैठी और वहाँ पर बैठ कोई पुस्तक पढ़ने का यत्न करने लगी।
नलिनी बहुत देर तक अपने घुटनों में सिर दिए बैठी रही, फिर वह उठी और अपने कमरे में चली गई। वह समझती थी कि सुमति इस पूर्ण कथा को अपने पति को बताएगी और यही बात डॉक्टर अपनी माँ से कहेगा और वह उसको घर से निकल जाने के लिए कहेगी।
किन्तु उसके विचार के विपरीत किसी ने उसको कुछ कहा ही नहीं। कई दिन व्यतीत हुए। डॉक्टर और उसकी माँ ने अपने व्यवहार में किसी प्रकार का परिवर्तन प्रकट नहीं किया। सुमति का व्यवहार भी सामान्य ही रहा।
उक्त घटना के दो मास बाद नलिनी एक दिन कार्यालय गई और फिर लौटकर नहीं आई। रात के खाने के समय तक उसकी प्रतीक्षा की गई। वह नहीं आई तो चिन्ता व्यक्त होने लगी। भोजनोपरान्त डॉ० सुदर्शन ने सुमति से कहा कि वह मोटर में उसे श्रीपति के घर ले चले जिससे कि यदि वह वहाँ हो तो पता किया जा सके। सुमति ने कहा, ‘‘मैं समझती हूँ कि उसकी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं। वह अपने भाई के घर पर नहीं है।’’
‘‘तो कहाँ है?’’
‘‘मेरा अनुमान है कि वह अपना घर बना रही है।’’
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