उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
‘‘यह तो हो गया। आज जब मुझे सुपरवाइजर ने कहा था कि मुझे अपनी सफाई देने के लिए उसके घर पर आना चाहिए तो मैंने पूछ लिया कि किस बात की सफाई, तो वह पत्र निकालकर मुझे कुछ काल्पनिक और कुछ वास्तविक गलतियाँ दिखाने लगा। मैं समझ गई कि यह नौकरी बड़ी महँगी पड़ेगी। कहीं फिर गर्भ ठहर गया तो क्या होगा। इस कारण सब-कुछ तुम्हें बताने के लिए विवश हुई हूँ।’’
‘‘मैंने तुम्हारी बात सुन ली है और तुम्हें मैं अपनी बात बताती हूँ। मैं बिना विवाह के भी स्त्री-पुरुष का सम्बन्ध इतना बुरा मानती जितना कि रुपए लेकर सम्बन्ध बनाना। किन्तु शर्त यह है कि दोनों का सम्बन्ध परस्पर की प्रबल इच्छा और बिना किसी प्रकार के प्रतिपादन की भावना से हो।’’
‘‘तुमने डॉक्टर साहब की पत्नी इसलिए बनना चाहा था कि उनके घर से तुमको खाना-पहनना और स्थान मिल रहा था। डॉक्टर साहब को तुम अपनी यौन-सेवाएँ रुपए-पैसे के बदले में देना चाहती थीं। अर्थात् तुम डॉक्टर साहब को मोल ले रही थीं। उन्होंने वेश्यावृत्ति स्वीकार नहीं की तो उसी बात के लिए तुमने वेश्यावृत्ति स्वीकार कर ली।’’
‘‘तो अब क्या करूँ?’’
‘‘इस विषय में मैं कुछ नहीं कह सकती। स्त्री को धन, सम्पदा, सुख-सुविधा दो ही कारणों से मिलें तो ठीक ही है। एक तो पत्नी बन पुरुष की सन्तान उत्पन्न करके और उसके पालन पोषण से। यह सब कुछ सन्तान के निमित्त है। अर्थात् यह गृहस्थ पालन के लिए है।’’
‘‘दूसरा है स्नेह के रूप में। यह माता-पिता, भाई देते हैं। तुमको भी यह मिल रहा था। परन्तु तुम यह समझ नहीं पाईं। धन के बदले में किया गया यौन-सम्बन्ध वेश्यावृत्ति कहलाता है। कोई भी सभ्य और बुद्धिशील स्त्री इसको उचित नहीं समझती।’’
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