लोगों की राय

उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

327 पाठक हैं

बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


सुमति हँस पड़ी। उसने कहा, ‘‘यह विचित्र प्रेम है। प्रेम का वह प्रतिदान नहीं प्राप्त हुआ जो तुमने अपने मन में निश्चय कर रखा था तो वही तुम किसी और से प्राप्त करने के लिए चल पडीं। दोनों बार यही हुआ। मैं समझती हूँ कि हम चौराहे पर पहुँच गए हैं और

हमारे मार्ग बदल रहे हैं। अब हम एक ही पथ के पथिक नहीं रहे।’’

‘‘अर्थात् मुझे यह घर छोड़ देना चाहिए?’’

‘‘ऐसा किसने कहा है? देखो नलिनी। यह घर मेरा नहीं है। मेरी सास का है। जब मैं तुमको लेने गई थी तो उनके कहने पर ही गई थी। इसलिए घर छोड़ने के लिए भी उनसे पूछना चाहिए। अभी तक तो उन्होंने तुम्हें यहाँ से निकल जाने के लिए कहा नहीं।’’

‘‘पथों की विभिन्नता का अभिप्राय यह नहीं कि हम एक साथ रह भी नहीं सकते। मेरा अभिप्राय है कि तुमसे प्रत्येक प्रकार की सहानूभूति रखते हुए भी तुमसे किसी प्रकार का सम्पर्क मैं नहीं रख सकती।’’

सुमति उठकर बाहर जाने ही वाली थी परन्तु नलिनी ने उसे बाँह से पकड़ लिया। नलिनी ने उसे बैठाते हुए कहा, ‘‘आखिर क्या किया है मैंने?’’

‘‘तुमने वेश्यावृत्ति की है। कितनी घूस माँगता था वह नौकरी देने के लिए?’’

‘‘दो सौ रुपए।’’

‘‘तो दो सौ रुपए में तुमने स्वयं को बेचा है। मैं समझती हूँ कि बहुत कम मूल्य लगाया है तुमने अपना।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book