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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘क्या दिया था रिश्वत में?’’

‘‘रुपए तो मेरे पास थे नहीं। उनके अभाव में मुझसे वही कुछ माँगा गया जो किसी स्त्री से माँगा जा सकता है। एक सप्ताह से अधिक हो गया है अभी से मुझे कहा जा रहा है कि मेरे काम में बहुत गलतियाँ हो रही है, उनकी सफाई मुझे ऑफिस-सुपरवाइजर के घर पर जाकर देनी चाहिए। नौकरी के लिए घूस देने भी मैं उसके घर पर गई थी। इस प्रकार मुझे नौकरी भी मिली है और पति भी।’’

‘‘बहुत प्रसन्न हो इससे तुम?’’

‘‘ऐसी अवस्था में तुम क्या समझती हो कि मुझे प्रसन्न होना चाहिए अथवा अप्रसन्न?’’

‘‘मैं क्या समझ सकती हूँ। हाँ, इतना मैं जानती हूँ इस प्रकार की अवस्था में पड़ने पर मैं अपने बड़ों से राय अवश्य लेती। घर का कोई भी बड़ा कदाचित् तुम्हें नौकरी करने के लिए नहीं कहता, कम-से-कम इस प्रकार की नौकरी की सम्मति तो कोई मूर्ख भी नहीं दे सकता था।’’

‘‘तो मैं क्या करती?’’

‘‘यदि डॉक्टर साहब पति के रूप में नहीं मिले थे, तो तुम मुझे अथवा उनकी माताजी को बतातीं। हम उनका स्थानापन्न ढूँढ़ने का यत्न करते। मैं समझती हूँ कि हम कोई योग्य वर ढूँढ़ लेते। उस वर को ढ़ूँढ़ने से पूर्व तलाक की आवश्यकता थी।’’

‘‘परन्तु मैं तो डॉक्टर साहब से प्रेम करती थी।’’

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