उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
कल्याणी ने बात को पुनः नलिनी की ओर घुमाते हुए कहा, ‘‘उन परिस्थितियों में से नलिनी की तुम कौन-सी परिस्थिति समझती हो?’’
‘‘मैं तो उसकी अवस्था एक विधवा बहन की-सी समझती हूँ। वह अपने सुखी और सम्पन्न भाई के पास रहना पसन्द करती रही है।’’
‘‘मान लो वह कोई काम नहीं करती और अपना और अपने बच्चे का बोझ तुम पर डालती रहती है तो तुम क्या करोगी?’’
‘‘जब तक मुझमें सामर्थ्य होगा मैं इन्कार नहीं कर सकती। बाद में उसका भगवान् रक्षक है। हम स्वयं को भी परमात्मा के आश्रित ही मानते हैं।’’
‘‘मेरी एक बात के विषय में तुमने कुछ नहीं बताया। तुम अपने पति के जीवन में जो छिद्र छोड़ रही हो, उन छिद्रों द्वारा वह उनमें घुसकर तुम्हारा स्थान ग्रहण कर सकती है।’’
‘‘मुझे इसमें कोई रोष नहीं होगा। मैं जो हूँ, जैसी हूँ, सदा अपने पति की सेवा के लिए तत्पर हूँ। इस पर भी वे मेरी अपेक्षा उसकी सेवा को प्राथमिकता देंगे तो मैं उसमें आपत्ति करने वाली कौन हूँ?’’
कल्याणी समझ रही थी कि यदि कहीं कुछ दोष है तो वह सुदर्शन में ही है, सुमति में नहीं।
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