उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
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नलिनी सरकार के केन्द्रीय कार्यालय में नौकरी ढूँढ़ रही थी। इसी निमित्त वह एम्प्लायमेंट एक्सचेंज द्वारा और अधिकारियों से मिलकर कार्य पाने का यत्न कर रही थी। कई स्थानों पर उसने प्रार्थना-पत्र दे रखे थे। उनका परिणाम जानने के लिए वह प्रायः घर से बाहर जाती रहती थी। उससे कभी किसी ने पूछा नहीं था कि वह कहाँ जाती है। अपने भाई श्रीपति के घर में भी उसको इतनी स्वतंत्रता नहीं थी।
सुमति को विस्मय तो होता था। वह चाहती थी कि कोई उससे पूछे कि वह कहाँ जाती है। परन्तु उसके मन में सदा यही विचार आता रहता था कि वह उसकी अनधिकार चेष्टा होगी। उसके विषय में वह क्यों पूछे। इस पर भी चिरकाल तक यह बात छिपी नहीं रह सकी। एक दिन वह प्रातः अल्पाहार कर कहीं जाने की तैयारी कर रही थी तो सुमति भी अपने पति को यूनिर्वसिटी छोड़ने जाने को तैयार हो रही थी। तीनों साथ ही कोठी से बाहर निकले तो सुदर्शन ने कहा, ‘‘यदि नलिनी को सिविल लाइन्स की ओर जाना हो तो वह भी तुम्हारी मोटर में आ सकती है।’’
‘‘मैं ओल्ड सेक्रेटेरियट जा रही हूँ।’’
‘‘तो चलो। मुझे यूनिवर्सिटी छोड़ फिर तुम जहाँ चाहों यह तुम्हें छोड़ आएगी।’’
नलिनी भी गाड़ी में बैठ गई। मार्ग में नलिनी ने पूछा, ‘‘आज आप मोटर में जा रहे हैं, क्या बात है?’’
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