उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
नलिनी सो रही थी और नर्स शिशु के मुख में मधु की बत्ती देकर चुप करा रही थी। नर्स ने निष्ठा को देखा तो मुस्कराते हुए कहा, ‘‘रात-भर जागते रहने के कारण अब इसकी माँ सो रही है।’’
‘‘क्यों? जागती क्यों रही है?’’
उसने उत्तर देने की अपेक्षा बच्चे की ओर संकेत किया। नर्स का अभिप्राय था कि ‘बहुत पला हुआ हृष्ट-पुष्ट बच्चा है। स्वाभाविक ही उसे जन्म देने में प्रसूता को कष्ट हुआ होगा।
बच्चे की क्षुधा शान्त हुई तो वह भी शान्त हो गया। उस पर जाली डालकर नर्स कमरे से बाहर आ गई। नलिनी का पति-मुख देख निष्ठा भी कमरे से बाहर आ गई। उसने पूछा, ‘‘तो यह सो रही है?’’
‘‘हाँ बीबी! कष्ट होता है। न। कष्ट-निवारण होने पर नींद आ जाया करती है।’’
कष्ट की बात सुन निष्ठा बात सुन निष्ठा को रोमांच हो आया। उसने चुपचाप अपने कमरे में जाकर सितार बजाना आरम्भ कर दिया। कुछ देर सितार बजाकर उसने बन्द कर दिया। आज उसका चित्त नहीं लगा। सितार को हाथ में थाम वह बैठी ही रही। उसके विचार दूर नागपुर जेल में थे। खड़वे को उस समय तक सात वर्ष का सश्रम कारावास का दण्ड मिल चुका था।
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