उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
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इसी प्रकार पाँच मास और बीत गए। नलिनी का बच्चा पाँच मास का हो गया था। वह खूब खाता-पीता, हँसता-खेलता और सोता था। निष्ठा उसे बहुत प्यार करती थी। शिशु भी निष्ठा के पास जाने में सुख और आनन्द का अनुभव करता था। निष्ठा का कमरा नलिनी के साथ ही था। इससे निष्ठा का संगीत सुन वह भी प्रातःकाल जाग जाया करता था। नलिनी उसे तब निष्ठा के कमरे में ले आया करती थी। कपड़े में लपेट सरस्वती की प्रतिमा के सम्मुख उसे लिटा वह स्वयं सुमति के कमरे में चली जाया करती थी। कभी तो सुमति जागी हुई होती और जग में चाय का पानी गरम कर रही मिलती, किन्तु जब वह उसे सोती ही मिलती तो नलिनी स्वयं जग का स्विच खोल देती और प्याले निकाल साफ कर दिया करती। पति-पत्नी दोनों के लिए चाय बनाकर वह उन्हें पिला देती। कभी एक प्याला अपने लिए भी बना लिया करती।
यों तो घर के काम-काज के लिए नौकर रखा हुआ था। खाना बनाने के लिए रसोइया था। फिर भी नलिनी घर के प्रत्येक प्रकार के कार्य में सहायक हो रही थी। सुदर्शन, उसकी माता तथा निष्ठा के लिए वह सुखप्रद सिद्ध हो रही थी। घर में वह बिलकुल हिल-मिल गई थी। और निष्ठा के कहने पर उसने भी संगीत का प्राथमिक अभ्यास कर दिया था।
जब सुमति प्रसूतिगृह में गई और उसके बच्चा हुआ तो वह सुदर्शन की अधिकाधिक सेवा करने में लगी रही। तब वही उसे जगाकर चाय पिलाया करती। उसके कपड़े ठीक करती, उसका कॉलेज ले जाने वाला बैग ठीक कर दिया करती बाज़ार से उसके लिए सामान ले आती और उसकी पुस्तकों को झाड़-फूँक दिया करती।
सुमति के प्रसव के तेरह दिन व्यतीत होने पर उसको पृथक् कमरा मिल गया। ऐसा सुमति की इच्छानुसार ही किया गया था। वह नहीं चाहती थी कि बच्चे के रोने-धोने के कारण सुदर्शन के आराम में किसी प्रकार का विघ्न पड़े।
सुमति का बच्चा उतना हष्ट-पुष्ट नहीं था जितना नलिनी का। फिर भी नलिनी के बच्चे से वह अधिक समझदार, सचेत और सर्तक था। वह सोता कम और खेलता अधिक था। जब तक सुमति का लड़का तीन मास का हुआ, नलिनी का लड़का ग्यारह मास हो चुका था। वह घुटनों के बल पूरी कोठी में घूम आया करता था।
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