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उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


सुमति भी इस विषय में और मनन कर रही थी, अन्त में एक दिन वह उसके घर जाकर उसको लिवा ही लाई। श्रीपति का तो यही कहना था कि जैसी भी रूखी-सूखी उसके घर में है, बहन के लिए उसमें किसी प्रकार की कमी नहीं हो सकती। फिर भी वह सज्ञान है, अपना हिताहित स्वयं विचार करने में स्वतंत्र एवं समर्थ है।

नलिनी ने भी इतने दिन के विचारोपरान्त निश्चय कर लिया था कि उसको सुमति का प्रस्ताव स्वीकार कर लेना चाहिए। अतः जब सुमति उसको लेने के लिए आई तो वह उसके साथ चल पड़ी।

नलिनी को दिल्ली आए एक मास से अधिक हो गया था और दो महीने बीतते-बीतते उसके एक पुत्र उत्पन्न हो गया। प्रसव सुदर्शन की कोठी पर ही हुआ। एक ले़डी-डॉक्टर की व्यवस्था कर दी गई थी। नलिनी को किसी प्रकार का कष्ट नहीं हुआ था। तेरह दिन के लिए एक नर्स का भी प्रबन्ध कर दिया गया। सुमति उन दिनों पाँचवें मास में थी और निष्ठा अपनी पढ़ाई और संगीत के अभ्यास में सर्वथा लीन थी। एक दिन प्रातःकाल निष्ठा उठी तो प्रसूति-गृह में किसी प्रकार का रुदन सुन चकित रह गई। घर के सभी प्राणी उस रात काफी भाग-दौड़ करते रहे थे, किन्तु वह गहरी नींद सोती रही थी। डॉक्टर आया, नर्स को बुलाया गया, प्रसव हुआ और उसको पता तक नहीं चला। यह ठीक था कि कोठी के जिस कोने में वह सोती थी उससे बिल्कुल विपरीत दूर के कोने में प्रसव के लिए स्थान बनाया गया था, फिर भी उसके ज्ञान में घर में यह पहला ही प्रसव था। निष्ठा के जन्म के बाद उसकी माँ के एक बच्चा और हुआ था किन्तु वह इतने कष्ट और ऑपरेशन से हुआ कि उसके बाद उसकी माँ के गर्भ ठहरा ही नहीं। तब वह तीन वर्ष की बालिका मात्र थी। उसको उस समय की किसी भी बात का स्मरण नहीं था। उसके बाद यही पहला अवसर था जब घर में किसी शिशु का आगमन हुआ था। सितार का स्वर ठीक करती-करती शिशु के रोने का शब्द सुन बिना विचार किए वह उठी और प्रसूति-गृह की ओर चल पड़ी।

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