लोगों की राय

उपन्यास >> सुमति

सुमति

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :265
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7598
आईएसबीएन :9781613011331

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

327 पाठक हैं

बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।


‘‘देख लो, तुमको भी तो ऐसा कठिन समय आ रहा है।’’

‘‘उसमें अभी काफी दिन हैं। तब तक वह निवृत्त हो जाएगी, भाई की अपनी बहन के साथ सहानुभूति होनी ही चाहिए।’’

माताजी से पूछने का तो बहाना था। वास्तव में वह नलिनी को घर में लाने से डरता था। उसके आचार-विचार से उसे अपने को तो कुछ अधिक भय प्रतीत नहीं होता था। वह पढ़ा-लिखा विद्वान् और समाज में एक स्थिति रखने वाला होने से अपने को सुरक्षित पाता पाता था। सबसे बड़ी बात थी सुमति का सौन्दर्य। गर्भ धारण करने पर वह कुछ रुग्ण रहने लगी थी। किन्तु वह अभी भी नलिनी से बहुत सुन्दर दिखाई देती थी।

डॉ० सुदर्शन को निष्ठा पर दूषित संस्कारों के पड़ने का भय था। वह समझता था कि नलिनी के घर आ जाने से उनका पूर्ण इतिहास वहाँ सबको विदित हो जाएगा। उसके पति की करतूत का भी उसे ज्ञान हो जाएगा। इससे उसका मन चंचल हो उठे तो विस्मय करने की बात नहीं।

‘वह अनुभव करता था कि निष्ठा कॉलेज जाती हैं। संगीत सीखने भी वह विद्यालय जाती है और सिनेमा, थियेटर देखने में रुचि रखती है। अतः दिल्ली के तथाकथित सभ्य समाज में रहने के लिए एक तने रस्से पर करतब करने से कम कठिन कार्य नहीं। इस पर यदि करतब करने वाले का ध्यान किंचित् भी विचलित हो जाए तो उसका भूमि पर गिर पड़ना निश्चित ही है। अतः उसने इस सब स्थिति को सुमति के सम्मुख वर्णन कर दिया–

‘‘हमें नलिनी को यहाँ लाने से पहले बहुत-सी बातों का विचार कर लेना चाहिए।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book