उपन्यास >> सुमति सुमतिगुरुदत्त
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बुद्धि ऐसा यंत्र है जो मनुष्य को उन समस्याओं को सुलझाने के लिए मिला है, जिनमें प्रमाण और अनुभव नहीं होता।
इस प्रस्ताव को सुनकर नलिनी और सुदर्शन दोनों स्तब्ध-से रह गए।
बैरा आया तो चाय भी आ गई। डॉ० सुदर्शन ने बात बदलते हुए खड़वे के विषय में पूछा, ‘‘खड़वे के विषय में क्या विचार है? वह पुनः वापस नहीं आ सकता क्या? मेरे विचार से मनुष्य में सुधरने और उन्नति करने की असीम क्षमता होती है।’’
‘‘अभी तो वे महाशय बम्बई में रँगे हाथ पकड़े गए हैं। वह लड़की भी उनके साथ ही थी। उसकी आयु चौदह वर्ष है। विवाह के विचार से वह अभी अल्पायु है, यौन-क्रिया के विचार से भी वह स्वीकृति देने की आयु से बहुत छोटी है। इस प्रकार दोहरा अपराध करने से उसे सात वर्ष से कम का दण्ड तो क्या मिलेगा।’’
‘‘फिर एक बात और भी है। वह यदि यहाँ आ भी गया तो क्या काम कर सकेगा? शिक्षा-कार्य के वह सर्वथा अयोग्य है। पहले सरकारी स्कूल की नौकरी से भी उसे इसी अपराध में निकाला गया था। यह भी वैसा ही दूसरा अपराध है। ऐसा ही एक तीसरा अपराध मेरे विवाह के दिन वह यहाँ करने वाला था।’’
‘‘इन सब बातों को दृष्टि में रखते हुए मैं समझती हूँ कि मेरे साथ उसका कोई सम्बन्ध नहीं रह सकता।’’
चाय पीने के बाद वे डॉक्टर के घर आ गए। निष्ठा तीन बजे का सिनेमा-शो देखकर घर लौटी तो नलिनी को वहाँ उपस्थित देख बहुत प्रसन्न हुई। तीनों सहेलियाँ पृथक् में बैठ बातें करने लगीं।
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