लोगों की राय

उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

410 पाठक हैं

नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘दो अंग्रेज़ औरतें नाग कबीले वालों द्धारा अपहरण कर ली गई थीं। उनको ढूँढ़ने और प्राप्त करने के लिए एक सैनिक टुकड़ी वनों में भेजी गई। तीन दिन की खोज के बाद महानदी के पार घने जंगलों में औरतें पाई गईं। कुछ नाग योद्धाओं ने उनके लाने में बाधा उपस्थित की तो उन से एक झड़प हो गई। उस झड़प में पाँच नागजातीय योद्धा मारे गए। दो हिन्दुस्तानी सिपाही घायल हुए। औरतें सुरक्षित अपने अभिभावकों के पास भे दी गई हैं। अब सब शान्ति है। बीस नागजाति के अपराधी पकड़े गए हैं। उन पर उपयुक्त ट्रिब्युनल में अभियोग चलाया जाएगा।’’

कुछ युवा तथा सुन्दर नाग औरतें लुमडिंग की छावनी में लाई गईं और उनको वेश्यावृत्ति के लिए विवश किया गया। शेष सबको स्टोप्स-बस्ती में भेज दिया गया।

सोना जब से सचिव के शिविर से लुमडिंग में लाई गई थी, वह आत्मग्लानि से भर गई थी। सचिव ने उसको बताया था कि सारा झगड़ा उसके कारण ही हुआ है। उसको यह भी बताया गया कि उस सैनिक झगड़े में सहस्त्रों ही नाग मारे गए तथा घायल हुए।

इस स्थिति से वह अपने को महापापिनी समझने लगी थी। इसके बाद जनरल माइकल उसके पास सहवास के लिए आया तो उसने इनकार कर दिया।

‘‘क्यों?’’ उसका प्रश्न था।

‘‘मैं समझ गई हूँ कि मेरा यह व्यवहार ठीक नहीं है। मैंने घोर पाप किया है और मुझे उसके लिए प्रायश्चित करना चाहिए।’’

‘‘तो फिर यहाँ किसलिए ठहरी हो? जहाँ चाहो, जा सकती हो।’’

‘‘मेमसाहब कहेंगी तो उनकी नौकरी छोड़कर चली जाऊँगी।’’

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book