उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
‘‘दो अंग्रेज़ औरतें नाग कबीले वालों द्धारा अपहरण कर ली गई थीं। उनको ढूँढ़ने और प्राप्त करने के लिए एक सैनिक टुकड़ी वनों में भेजी गई। तीन दिन की खोज के बाद महानदी के पार घने जंगलों में औरतें पाई गईं। कुछ नाग योद्धाओं ने उनके लाने में बाधा उपस्थित की तो उन से एक झड़प हो गई। उस झड़प में पाँच नागजातीय योद्धा मारे गए। दो हिन्दुस्तानी सिपाही घायल हुए। औरतें सुरक्षित अपने अभिभावकों के पास भे दी गई हैं। अब सब शान्ति है। बीस नागजाति के अपराधी पकड़े गए हैं। उन पर उपयुक्त ट्रिब्युनल में अभियोग चलाया जाएगा।’’
कुछ युवा तथा सुन्दर नाग औरतें लुमडिंग की छावनी में लाई गईं और उनको वेश्यावृत्ति के लिए विवश किया गया। शेष सबको स्टोप्स-बस्ती में भेज दिया गया।
सोना जब से सचिव के शिविर से लुमडिंग में लाई गई थी, वह आत्मग्लानि से भर गई थी। सचिव ने उसको बताया था कि सारा झगड़ा उसके कारण ही हुआ है। उसको यह भी बताया गया कि उस सैनिक झगड़े में सहस्त्रों ही नाग मारे गए तथा घायल हुए।
इस स्थिति से वह अपने को महापापिनी समझने लगी थी। इसके बाद जनरल माइकल उसके पास सहवास के लिए आया तो उसने इनकार कर दिया।
‘‘क्यों?’’ उसका प्रश्न था।
‘‘मैं समझ गई हूँ कि मेरा यह व्यवहार ठीक नहीं है। मैंने घोर पाप किया है और मुझे उसके लिए प्रायश्चित करना चाहिए।’’
‘‘तो फिर यहाँ किसलिए ठहरी हो? जहाँ चाहो, जा सकती हो।’’
‘‘मेमसाहब कहेंगी तो उनकी नौकरी छोड़कर चली जाऊँगी।’’
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