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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


इसी बीच सचिव के शिविर में आक्रमण हो गया और उसके उत्तर में तोपें दाग दी गईं। जिस टुकड़ी न शिविर पर आक्रमण किया था, उसका गोलियों की बौछार से स्वागत किया गया।

दो ही घण्टे में युद्ध शान्त हो गया। अन्य दो घण्टों में गिनती की गई। बीस सहस्त्र नाग मारे गये और बीस ही सहस्त्र घायल हुए। लगभग दस सहस्त्र बन्दी बना लिये गए। शेष भाग गए।

अंग्रेज़ औरतें नहीं मिलीं। नाग बन्दियों को पीट-पीटकर बहकाया गया। इससे यह विदित हुआ कि नाग औरतों के साथ ही उनको भी घने वन में भेज दिया गया है। उस वन की ओर एक शक्तिशाली टुकड़ी भेज दी गई।

तीन दिन के भीतर पचास सहस्त्र के लगभाग बच्चे और औरतें पकड़-पकड़कर सैनिक कैम्प में ले आई गईं। बहुत-से बच्चों और बूढ़ी औरतों को तो मार्ग में ही मार दिया गया। शिविर में लाई जाने वाली युवा स्त्रियों की संख्या भी पर्याप्त थी। उनके साथ सैनिकों ने बहुत बुरा व्यवहार किया। कोई भी स्त्री बलात्कार से बच नहीं सकी।

तदनन्तर भारत सरकार के मन में भय समा गया कि इस अभियान की सूचना यदि भारत की जनता को प्राप्त हो गई तो न जाने देश में कितना बड़ा विप्लव हो जाए! इस कारण सरकार की ओर से निम्न प्रकार की एक विज्ञप्ति निकाल दी गई–

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