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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...

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जनरल माइकल तो किसी प्रकार के वार्तालाप में विश्वास नहीं रखता था। उसका कहना था कि यह विद्रोह किया गया है और इसको शक्ति से ही कुचल देना चाहिए। वार्तालाप तो भारत सरकार चाहती थी। सन् १९२१-२२ के स्वराज्य आन्दोलन को सरकार ने दबाया था और वह नहीं चाहती थी कि इस विशाल हत्या से वह स्वराज्य-आन्दोलन इन वनवासियों में घुस जाए और वे देश के नेता गांधी के अनुयायी बन जाएँ।

सेना के पंचायत बुलाने के विरोध होने पर भी वार्तालाप हुआ। परन्तु सैनिक दृष्टि से तैयारी को सचिव महोदय रोक नहीं सके। सेना, जनरल की आज्ञा से युद्ध को आवश्यक समझ, अपनी गतिविधि को चलाती रही। सचिव को जब पता चला कि दो नाग औरतें इधर हैं तो उसने उनको शिविर में लाने की आज्ञा दे दी।

सोना को यह विदित नहीं था कि नागजातीय बहुत बड़ी संख्या में एकत्रित हो, युद्ध की घोषणा कर चुके हैं। यह बात कि युद्ध का कारण वह ही है, उसको तो क्या, मिस्टर तथा मिसेज़ माइकल को भी विदित नहीं था। जब सरकार के सचिव की आज्ञा हुई कि सोना नाम की औरत को उसके सामने उपस्थित कर दिया जाए तो जनरल माइकल ने सोना को बुलाकर पूछा, ‘‘तुम अपने कबीले में जाना चाहती हो?’’

‘‘नहीं।’’

‘‘भारत सरकार को यह कहा गया है कि तुम यहाँ बलपूर्वक रोकी गई हो।’’

‘‘यह गलत है।’’

‘‘तुम्हें हमारे अफसर के सामने जाकर यह बात कहनी होगी।’’

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