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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


इस समय सचिव का सन्देश आया कि दो नाग औरतों में से एक मिल गई है। वह इस समय सचिव के शिविर में विद्यमान है, दूसरी स्त्री के विषय में यह पता चला है कि वह स्वेच्छा से इग्लैंड चली गई है। उसको वापस बुलाकर लाने में एक मास लग जाएगा। हम वचन देते हैं कि उसको भी वापस कर देंगे। अब पंचायत को अंग्रेज़ औरतों को यहाँ भेज देना चाहिए और युद्ध नहीं होना चाहिए।

इस समाचार पर चीतू ने सचिव के कथनानुसार करने के लिए कहा। एक तो अंग्रेज़ औरतें जंगल में भेज दी गई थीं, दूसरे सचिव के कहने पर कि सोना को भेज दिया जाएगा और बिन्दू को विलायत से लाया जाएगा, किसी को विश्वास नहीं आया। केवल चीतू ही ऐसा था जो सचिव की बात पर विश्वास करता था।

पंचायत ने सचिव के कथन का यह उत्तर भेजा कि एक घंटे के भीतर घेरा उठा लिया जाए, तभी स्त्रियों के विषय में बातचीत की जा सकती है। इस उत्तर पर पुनः सचिव ने आग्रह किया कि पहला सरपंच आ जाए और उसको सोना नाम की स्त्री दिखा दी जाएगी और उसको वह औरत दे दी जाएगी। युद्ध की आवश्यकता नहीं रहेगी।

इसके उत्तर में चीतू को मृत्युदण्ड दे दिया गया और उसका सिर काटकर एक भाले की नोक में लगा सचिव के पास भेज दिया गया। चीतू के सिर को देख सचिव को क्रोध चढ़ आया। अंग्रेजी सेना आक्रमण करने अथवा सोना को भेजने के विषय पर विचार ही कर रही थी कि नाग सैनिकों ने अपना अभियान आरम्भ कर दिया।

इस पर तोपें दागने की आज्ञा दे दी गई। और दो घंटे में ही पचास सहस्त्र सैनिक परास्त कर दिए। अधिकांश मारे गए। घायलों एंव अवशिष्ट नागों को बन्दी बना लिया गया।

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