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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘कह दूँगी।’’

‘‘तुमको यहाँ लुमडिंग में सोफी की सेवा में रहने का हठ करना होगा।’’

‘‘कर दूँगी।’’

इस प्रकार सिखा-पढ़ाकर सोना को सचिव के शिविर में पहुँचा दिया गया। पंचायत के साथ वार्तालाप के लिए निश्चित दिन प्रातःकाल ही सोना सचिव के सम्मुख उपस्थित कर दी गई। सचिव ने एक प्रौढ़ावस्था की सुन्दर औरत को सामने खड़ा देखा तो चकित रह गया। उसको नाग सरपंच का यह कहना सत्य प्रतीत हुआ कि अंग्रेज़ अधिकारियों ने उनकी औरतों को पकड़ रखा है। उसने पूछ लिया, ‘‘क्या नाम है तुम्हारा?’’

‘‘सोना।’’

‘‘लुमडिंग में क्या करती हो?’’

‘‘जनरल साहब की पत्नी की नौकरी करती हूँ।’’

‘‘तुमको वहाँ रहने पर किसी ने विवश कर रखा है?’’

‘‘नहीं, मैं अपनी इच्छा से वहाँ नौकरी कर रही हूँ। मेरा घरवाला मुझको मार देना चाहता था। इस कारण मैं उसके पास जाना नहीं चाहती।

सचिव महोदय ने उसको बताया, ‘‘देखो, तुम्हारे लिए पचास हज़ार नाग लड़ने-मरने के लिए तैयार हो गए हैं। वे तुमको वापस माँग रहे हैं। तुमको वापस करने के लिए वे तुम्हारे बदले में दो अंग्रेज़ औरतों को पकड़ कर ले गए हैं और उनको कैद कर रखा है। यदि तुम वापस नहीं जातीं तो युद्ध होगा। युद्ध में अंग्रेज़ी सेना की विजय होगी। तोपों, बन्दूकों और हवाई जहाज़ के मुकाबले में नाग सैनिकों के बरछे, भाले और तीर कुछ भी काम नहीं कर सकेंगे। हज़ारों नाग मारे जाएँगे, तुम्हारी जात की हज़ारों औरतें विधवा हो जाएँगी और फिर वे नगरों में जाकर पेशा करेंगी अथवा क्रिस्तान होने के लिए विवश हो जाएँगी। इस कारण तुम अपने भाईबन्दों को जाकर समझाओ कि तुम वहाँ पर स्वेच्छा से रहती हो। तुमको किसी ने रोककर नहीं रखा है।...उनके पास जाकर तुम युद्ध रोकने का यत्न करो।’’

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