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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


‘‘परन्तु वह इस बस्ती में रहते हुए नहीं हो सकता। बड़ौज हम पर सन्देह करने लगा है। मैंने सन्देह निवारण का यत्न तो किया है, परन्तु सन्देह पक्का होने पर वह मेरी और आपकी हत्या कर देगा। नाग लोग अपनी निष्ठाविहीन पत्नी और उसके मित्र का यह अन्त धर्मानुकूल मानते हैं।’’

‘‘तो तुम क्या चाहती हो?’’

‘‘मुझे कहीं अन्यत्र ले चलो।’’

स्टीवनसन गम्भीर विचार में पड़ गया। उसने कुछ विचारकर कहा, ‘‘तुम्हारे लिए मैं दुनिया के अन्तिम छोर तक जाने के लिए तैयार हूँ। कुछ दिन प्रतीक्षा करो, हम चल देंगे।’’

शिलांग के पादरियों की सभा होने वाली थी। स्टीवनसन ने उस कान्फ्रेंस में जाने का प्रबन्ध कर लिया। साथ ही उसने बिन्दू ग्रीन को अपनी सेकेटरी के रूप में ले जाने की स्वीकृति ले ली। पादरी का कहना था कि उसको बिन्दू के पति से स्वीकृति ले लेनी चाहिए। वह ले ली गईं और अगले दिन दोनों बस्ती के घोड़ो पर सवार होकर लुमडिंग को चल पड़े।

लुमडिंग में तो वे केवल कुछ घण्टे ही ठहरे, फिर वहाँ से गोहाटी, और गोहटी से शिलांग जा पहुँचे।

उस सम्मेलन में लगभग एक सौ प्रतिनिधि उपस्थित थे। भारत के चीफ आर्चबिशप इस सम्मेलन के प्रधान थे। बिन्दू को तो केवल सम्मेलन के पण्डाल की लॉबी में ही बैठनी की स्वीकृति थी। स्टीवनसन सम्मेलन में सक्रिय भाग ले रहा था।

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