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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


इस प्रकार अपनी अन्तरात्मा में अपने व्यवहार में अपने व्यवहार के विरुद्ध उठ रही आवाज़ का गला घोंटकर वह स्टीवनसन के सामने आत्मसमर्पण कर बैठी थी। जब बड़ौज उससे उसके मास्टर को बदले में देने के विषय में पूछ रहा था, तब इसी युक्ति से वह अपनी आत्मा की आवाज़ को दबा रही थी। वह स्टीवनसन के बिस्तर की दुग्ध-समान श्वेत सुवासित चादर का मुकाबला करने लगी थी बड़ौज के पन्द्रह दिन के मैले और कठोर बिस्तर के साथ। स्टीवनसन के नित्य हजामत किए गोरे चिकने मुख का मुकाबला करती थी बड़ौज के आठ दिन से हजामत किए हुए गन्दे और खुरदरे मुख से। उसके मन ने निर्णय कर लिया था। परन्तु वह अभी मरना नहीं चाहती थी और वर्तमान मन की अवस्था में बड़ौज का सन्देह विश्वास में बदलने पर मारा जाना निश्चित था।

अगले दिन वह उठी तो बड़ौज के बिस्तर में चली गई और उससे गाढ़ आलिंगन कर कहने लगी, ‘‘यदि मास्टर की भेंट देने पर नाराज़ हो तो मैं उसकी ये सब वस्तुएँ वापस कर आती हूँ।’’

मैं इन वस्तुओं को लेने से नाराज़ नहीं। मैं तो चिन्ता कर रहा था उस वस्तु के विषय में जो तुमको इसके बदले में देनी पड़ेगी।’’

‘‘मुझे कुछ नहीं देना पड़ेगा।’’

‘‘तो ठीक है।’’

उसी दिन स्कूल के बाद वह स्टीवनसन से मिली तो उसने अपना भय व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘अब आप मुझसे क्या चाहते हैं?’’

स्टीवनसन बोला, ‘‘एवरलास्टिंग लव।’’१ (अमर प्रेम)

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