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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


मिस्टर स्टीवनसन इसी कांफ्रेंस में सम्मिलित होने के लिए गया था और जाते-जाते वह बिन्दू को अपना असिस्टेण्ट बनाकर साथ ले गया था। बिन्दू ने उसका सम्बन्ध तो स्टोप्सगंज में ही हो गया था। वह यत्न तो कई दिन से कर रहा था, परन्तु उसको पूर्ण विजय तो उस दिन मिली जिस दिन उसने बिन्दू को ग्रामोफोन भेंट में दिया था।

उसी दिन बिन्दू ने बड़ौज के मन में उत्पन्न होने वाले सन्देह का निराकरण का यत्न भी किया था परन्तु वह मन में समझ रही थी कि वह उसका समाधान नहीं कर सकी। उसने उसकी सफाई देते ही सन्देह उत्पन्न किया था। वह यह समझ गई थी कि यह स्थिति चिरकाल तक नहीं चल सकती और अपने कबीले वालों के रीत-रिवाज से वह जानती थी कि उसके चरित्र पर सन्देह होते ही बड़ौज उसको मार डालेगा। इस कारण उसने अपने मन में निश्चय कर लिया था कि या तो वह अपने मास्टर से सम्बन्ध रखना बन्द कर देगी, अन्यथा वह स्टीवनसन को कहेगी कि उसको कहीं ऐसे स्थान पर ले जाए जहाँ बड़ौज पहुँच ही न सके। उसका मन कहता था कि उसने अपने पति के साथ विश्वासघात किया है, परन्तु अपने सौन्दर्य और अपने पति को आर्थिक अवस्था देख वह मन में विचार करने लगी थी कि उसका उसके साथ विवाह एक भूल थी।

उसके मन में अभी तक ईसाइयों की देवी मरियम की वैसी प्रतिष्ठा नहीं बनी थी जैसी कि अपने मिट्टी के बने कबीले के देवता की थी। इसी कारण वह समझती थी कि उसके सामने दिया हुआ वचन है ही नहीं।

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