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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


पहले दिन प्रधान का भाषण हुआ। भाषण छपा हुआ था। उसमें पिछले दिन साठ वर्ष के ईसाई धर्म के भारत में प्रचार का इतिहास था, फिर उन शक्तियों का उल्लेख था जो धर्म-प्रचार में बाधक हो रही थीं। इन शक्तियों में इस्लाम भी एक था। आर्चबिशप महोदय का विचार था–

इस्लाम ईसाइयत का सबसे बड़ा विरोधी है। यद्यपि खिलाफत के मिट जाने से इस्लाम दुर्बल हुआ है, फिर भी यह एक ऐसी शक्ति है जो विश्व के एक बहुत बड़े गुट को संगठित करने में सशक्त है।

देश के अन्दर ईसाइयत की सफल विरोध आर्यसमाज ने किया है। परन्तु देश में अछूतोद्धार का काम एक राजनीतिक नेता के हाथ में आ जाने से आर्यसमाज निष्प्रभ हो गया है।

फिर भी ईसाइयत को जो खतरा है वह कम नहीं हुआ। राजनीति जनता के हाथ में आ जाने से और अछूतोद्धार महात्मा गांधी के हाथ में आ जाने से हिन्दुस्तानी ईसाई तो अपने को सुरक्षित मान अफीम खाए हुए मानव की भाँति निश्चिन्त हो सो जाएँगे, और भारत में स्वराज्य मिलने पर बहुसंख्या वाले हिन्दू ईसाइयत को निर्मूल कर देंगे। देश में राजनीतिक ढाँचा बदलने के साथ राज्य की ओर से जो संरक्षण हमको मिल रहा है, वह नहीं रहेगा; और भारतवर्ष जैसा जहालत में फँसा देश भगवान के पुत्र प्रभु यीशु मसीह की दया के हाथ से वंचित रह जाएगा।

देश में राजनीतिक करवट बदलने से हमको भी अपने प्रयास का रूप बदलना चाहिए। हमको देश के कुछ क्षेत्रों में हमारा काम उग्र रूप से आरंभ कर देना चाहिए। और क्षेत्रों में अपने धर्मानुयायियों का बहुमत बना वहाँ ईसाई राज्य स्थापित कर देना पड़ेगा। भारत में वह ईसाई राज्य फेडरेशन का अंग बनकर रहेगा अथवा इस महाद्वीप में एक स्वतन्त्र राज्य बनकर, यह बाद में विचार कर लिया जाएगा।

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