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उपन्यास >> बनवासी

बनवासी

गुरुदत्त

प्रकाशक : सरल प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :253
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 7597
आईएसबीएन :9781613010402

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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...


इस विचार से उसके हृदयस्थल में एक टीस उठी और वह और अधिक सहन न कर सकने के कारण भीतर बैठने के कमरे में आ गया और प्रकाश करने के लिए मिट्टी के तेल का लैम्प जलाने लगा। वह अभी माचिस से लैप जला ही रहा था कि बिन्दू और उसका मास्टर आ गए और मास्टर ने बड़ौज को सम्बोधित कर कहा, ‘‘मिस्टर ग्रीन! कैसे हो?’’

‘‘ठीक हूँ साहब!’’ दीर्घ निःस्वास छोड़ते हुए बड़ौज ने कहा।

जब कमरे में प्रकाश हो गया तो स्टीवनसन ने नौकर को भी बुलाकर कहा कि वह उस वस्तु को वहाँ पर रख दे।

बिन्दू ने बड़ौज की बाँह पर हाथ रखकर उसे अपनी ओर आकर्षित करते हुए कहा, ‘‘देखो जी, मास्टर जी मेरे लिए क्या लाए हैं?’’

बड़ौज को कुछ ऐसा प्रतीत हुआ कि बिन्दू का हाथ जल रहा है। उसने उसके हाथ को हटाते हुए घूमकर पूछा, ‘‘क्या है?’’

बिन्दू ने वह वस्तु खोल दी। एक कागज में लपेटा हुआ सन्दूक-सा था। बिन्दू ने कागज को हटाकर सन्दूक खोला। यह ग्रामोफोन था। बड़ौज ने देखा कि चीज़ तो सुन्दर है। परन्तु उसके विस्मय का ठिकाना नहीं रहा, जब बिन्दू ने उसमें चाबी भर, उस पर रिकार्ड रखकर बजाना आरम्भ किया।

एक अंग्रेज़ी डांस-ट्यून थी। जब बजने लगा तो बिन्दू अपना वनवासियों का नृत्य करने लगी। बड़ौज उसको प्रसन्नता में नाचती देख बहुत प्रसन्न हुआ। परन्तु जब बाजा बजना बन्द हुआ तो यह समझ कि उसकी पत्नी को प्रसन्न करने वाला वह स्वयं नहीं प्रत्युक्त कोई अन्य है, उसका हृदय भीतर-ही-भीतर बैठने लगा।

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