उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
|
410 पाठक हैं |
नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
स्वीवनसन उठा और बड़ौज से हाथ मिला और बिन्दू को ‘चियरो’ कह विदा हो गया। जब वह चला गया तो बड़ौज उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बोला, ‘‘आज कुछ खाया नहीं जाएगा क्या?’’
‘‘ओह! तो आपने चाय नहीं पी?’’
‘‘मैं तो तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था।’’
बिन्दू ने बाजा बन्द किया और रसोईघर में जा चूल्हा जला, चाय बनाने लगी। चाय पीते समय बड़ौज को अनुभव हुआ कि बिन्दू कुछ भी नहीं खा रही, प्रत्युत उसको ही खिला-पिला रही है। उसको जब इस बात का भान हुआ तो उसने बिन्दू से पूछा, ‘‘बिन्दू! कुछ खा नहीं रही हो, क्या बात है?’’
‘‘मैं मिस्टर स्टीवनसन के साथ चाय पी आई थी।’’
बड़ौज ने पुनः एक दीर्घ निःश्वास छोड़ा और मौन हो गया। रात का खाना भी बिन्दू ने कम ही खाया। बड़ौज ने अब अधिक नहीं पूछा। सबसे विशेष बात यह हुई कि बिन्दू ने आज पहली बार थकावट का बहाना कर जल्दी सो जाने का आयोजन किया।
अपने मन का संशय निवारण करने के लिए बड़ौज ने पूछा, ‘‘यह बाजा कितने का होगा?’’
‘‘स्टीवनसन कह रहे थे कि एक सौ पचास रुपये का तो बाजा ही है और दो रुपये आठ आने का एक रिकार्ड है, इस प्रकार दस रिकार्ड के पचीस रुपये हो गए।’’
बड़ौज पूर्ण कीमत गिन नहीं पाया। इससे उसने अपनी गणितज्ञा पत्नी से ही पूछा, ‘‘कुल कितने बने?’’
‘‘पौने दो सौ रुपये।’’
|