उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
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बिन्दू ने बड़ौज को भी अंग्रेज़ी पढ़ाने का यत्न किया था। परन्तु बड़ौज मजदूरी करने से थककर पढ़ने की ओर ध्यान नहीं दे सकता था। जब बिन्दू अंग्रेज़ी की तीसरी पुस्तक पढ़ रही थी, बड़ौज तब तक अक्षरबोध ही पढ़ रहा था। एक वर्ष के निरन्तर प्रयत्न के बाद उसने पढ़ना छोड़ दिया। इससे बिन्दू को निराशा हुई, परन्तु उसके पति ने जब कहा, ‘‘क्या तुम्हारी पुस्तक पढ़ लेने से मैं तुमको कुछ अधिक प्यार कर सकूँगा?’’ तो वह चुप हो गई।
वह अपने पति और बस्ती के अन्य पढ़े-लिखे युवकों में अन्तर समझने लग गई थी। रहन-सहन, वस्त्र पहनने तथा बात-चीत करने में अन्तर प्रतीत होने लगा था। साथ ही मजदूर तथा राजगीर के काम में तथा एक पढ़े-लिखे के काम में भी अन्तर उसकी समझ में आने लगा था।
उसको अंग्रेज़ी तथा गणित सिखाने वाला एक मास्टर सैमुएल स्टीवनसन था। वह इंग्लैंड के एक धनी परिवार का युवक था। वह पिछड़ी जातियों में भगवान के ज्ञान का प्रकाश करने का पुण्य-लाभ करने के लिए ही अपनी जीवन-भर की सेवाएँ क्रिश्चियन मिशन को दे बैठा था। जब वह भारत में अन्धकार दूर करने के विचार से आया था तब उसकी आयु तेईस वर्ष की थी। लगभग आठ वर्ष से वह इसी बस्ती में काम कर रहा था। पूर्ण बस्ती में वह एक धर्मपरायण और शुद्ध-पवित्र आचरण का व्यक्ति समझा जाता था।
बिन्दू के आने से पूर्व कई नाग लड़कियों ने उससे विवाह करने का यत्न किया था, परन्तु कोई भी उसके मन को आन्दोलित नहीं कर सकी। और इकत्तीस वर्ष की आयु में वह सर्वथा किसी प्रकार के लगाव से रहित जीवन व्यतीत कर रहा था। रहने के लिए उसको एक पक्की ‘कॉटेज’ मिली हुई थी और वह अपना अधिकांश समय अध्ययन एवं पूजा-पाठ में व्यतीत करता था।
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