उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
अर्दली ने पूछकर बताया, ‘‘सरकार! कहती है कि वह ठीक है। यह चल तो सकती है, परन्तु माथे पर पीड़ा है, डॉक्टर की दवाई से घाव जल गया है, इस कारण।’’
‘‘पूछो कि यह कहाँ जा रही है?’’
‘‘पूछा है सरकार! यह कह रहा है कि आज ही जंगल से आए हैं और रहने की स्थान और कुछ करने के लिए काम ढूँढ़ रहे हैं।’’
‘‘ये वन से आए क्यों हैं?’’
‘‘कहते हैं कि कबीले वालों से लड़कर मारे जाने के भय से भाग आए हैं।’’
‘‘इनसे पूछो, हमारी नौकरी करेंगे।’’
अर्दली ने पूछा और बताया, ‘‘तैयार हैं।’’
‘‘इनको एक ‘आउट-हाउस’ में ठहरा दो। इनके खाने-पीने का प्रबन्ध कर दो। कल इनसे बात करेंगे।’’
जब अर्दली उनको लेकर चला गया तो मिस्टर माइकल ने कहा, ‘‘क्या करोगी इनसे?’’
‘‘यह औरत बहुत ही सुन्दर है।’’
‘‘बूढ़ी हो रही है।’’
‘‘इससे क्या होता है। इसका चित्र बनाऊँगी, साथ ही इसका घरवाला जादूगर है। एक घण्टे में उसने वह कुछ कर दिखाया है, जिसके करने में डॉक्टर को तीन-चार दिन लग जाते, और इस पर भी उसको सन्देह ही था कि ठीक हो भी जाएगी अथवा नहीं।’’
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