उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
‘‘तो अब क्या हो रहा है?’’ कमांडिंग आफिसर मिस्टर माइकल ने पूछ लिया।
‘‘उसका घर वाला इलाज कर रहा है और डॉक्टर हस्पताल को लौट गया है।’’
‘‘क्या चिकित्सा कर रहा है?’’
‘‘अपनी गठरी में से कुछ निकालकर पानी में उबालने की बात कर रहा है।’’
मिस्टर माइकल अपने मित्रों के साथ दो रेजिमेण्टों में फुटबॉल का मैच देखने के लिए चला गया। सोफी बरामदे में रखी एक कुर्सी पर बैठ नॉवल उठाकर पढ़ने लगी।
डेढ़ घण्टे का मैच देखकर मिस्टर माइकल लौटा। उसने अपनी पत्नी से उस घायल औरत का हाल पूछा। इस समय अर्दली ने आकर सलाम करते हुए बताया, ‘‘सरकार! वह आदमी और औरत जाना चाहते हैं।’’
‘‘तो वह जा सकती है क्या?’’
‘‘हाँ हुजूर! वह उठकर गठरी कन्धे पर उठाए खड़े हैं।’’
‘‘उसको यहाँ ले आओ।’’
अर्दली गया और उसको लेकर आ गया। धनिक पीछे-पीछे था और सोना आगे-आगे।
जब वे सामने आकर खड़े हो गए तो सोफी ने अर्दली ने पूछा, ‘‘इस औरत से पूछो कि यह ठीक है क्या?’’
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