उपन्यास >> बनवासी बनवासीगुरुदत्त
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नई शैली और सर्वथा अछूता नया कथानक, रोमांच तथा रोमांस से भरपूर प्रेम-प्रसंग पर आधारित...
डॉक्टर ने समझाया कि उसकी कमर पर दवाई लगाएँगे। परन्तु धनिक ने डॉक्टर को कहा, ‘‘मेरे पास इनकी दवाई है। यह अभी ठीक हो जाएगी। मैं इसको वहाँ नहीं ले जाने दूँगा।’’
डॉक्टर ने मुस्कराते हुए कमांडिंग ऑफिसर की पत्नी को कहा, ‘‘यह औरत और यह आदमी नागजातीय प्रतीत होते हैं। इनके पास सच ही ऐसी औषधियाँ होती हैं कि मरते-मरते प्राणी को एक चुटकी-भर में ठीक कर देते हैं।’’
‘‘तो इसको लगाने दो।’’
‘‘तो मैं जाऊँ? अपने सामने मैं ऐसी ‘क्वेकरी’ होते नहीं देख सकता।’’
‘‘तो आप कैसे कहते हैं कि ये ठीक कर लेते हैं?’’
‘‘यह एक दूसरी बात है।’’
सोफी हँस पड़ी। उसने हँसते हुए कहा, ‘‘ठीक है, आप जा सकते हैं। आवश्यकता हुई तो मैं फोन कर दूँगी।’’
डॉक्टर गया तो उसने अर्दली से कहा, ‘‘इसके घर वाले को कहो कि यहीं पर ही वह इस पर दवाई लगा सकता है। साथ ही जो कुछ माँगे, दे दो और जैसे कहे वैसा करो।’’
इतना कह सोफी कोठी के ‘ड्राइंग रूम’ में चली गई और वहाँ अपने पति और उसके मित्रों के बीच डॉक्टर की बात बताने लगी, ‘‘डॉक्टर कहता है कि ये नागजातीय हैं और ऐसी जड़ी-बुटियाँ जानते हैं कि जिनसे ये रोगी को बहुत जल्दी ठीक कर लेते हैं। परन्तु इस ‘क्वेकरी’ को वह अपने सामने नहीं करने देगा।’’
इन परस्पर-विरोधी बातों का अर्थ न समझ सब विस्मय में सोफी का मुख देखते रह गए। सोफी ने आगे बताया, ‘‘औरत उठ-बैठ और करवट भी नहीं बदल सकती। मुझे भय है कि कहीं उसकी ‘हिप-बोन’१ न टूट गई हो।’’ (१.कूल्हे की हड्डी)
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